वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए इनकम टैक्स की गणना और कटौतियाँ एक ऐसा विषय है जो हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है। खासकर जब बात हमारी मेहनत की कमाई से टैक्स कटने की आती है, तो हर कोई जानना चाहता है कि यह कैसे काम करता है और अपनी जेब पर बोझ कैसे कम करें। क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी सैलरी से कटने वाला टैक्स आखिर किस आधार पर तय होता है?
या क्या कोई ऐसा आसान तरीका है जिससे आप अपनी टैक्स देनदारी को समझ सकें और बचत भी कर सकें? अगर हाँ, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं।यह ब्लॉग पोस्ट आपको वेतन से टीडीएस (TDS) कटौती के नियमों, नए और पुराने टैक्स रिजीम (Tax Regime) के विकल्पों, और आपकी टैक्स योग्य आय की गणना करने के आसान तरीकों के बारे में विस्तार से बताएगा। मैंने खुद कई बार इन जटिलताओं को समझने में घंटों लगाए हैं, और मुझे पता है कि सही जानकारी कितनी मायने रखती है। मैं आपको अपना अनुभव बताते हुए कुछ ऐसी टिप्स भी दूंगी, जिनसे आप अपनी टैक्स प्लानिंग को बेहतर बना सकते हैं और साल के अंत में होने वाली भागदौड़ से बच सकते हैं।तो चलिए, आपकी सैलरी से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर गहराई से जानते हैं, ताकि आप वित्तीय रूप से अधिक सशक्त बन सकें। नीचे दिए गए लेख में, हम वेतनभोगी आय के लिए आयकर की गणना से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात को एकदम सटीक तरीके से जानेंगे!
आपकी सैलरी और आयकर: एक गहरा रिश्ता जिसे समझना है आसान

सैलरी स्लिप को पढ़ना सीखें: यह सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा नहीं!
मुझे याद है, जब मैंने अपनी पहली नौकरी शुरू की थी, तो सैलरी स्लिप देखकर मेरा सिर घूम जाता था। इतने सारे अंक, कटौतियाँ और नाम… समझ ही नहीं आता था कि क्या है। लेकिन दोस्तों, आपकी सैलरी स्लिप सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा नहीं है, यह आपकी पूरी वित्तीय कहानी का आईना है!
इसमें आपकी मूल आय, भत्ते (जैसे HRA, DA, कन्वेंस अलाउंस), और सबसे महत्वपूर्ण, टैक्स कटौतियों की जानकारी होती है। अगर आप इसे पढ़ना सीख गए, तो आपको अपनी इनकम टैक्स देनदारी का एक मोटा-मोटा अंदाजा तुरंत लग जाएगा। मेरी सलाह है कि हर महीने अपनी सैलरी स्लिप को ध्यान से देखें। यह न सिर्फ आपको अपनी आय के घटकों को समझने में मदद करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि आपकी कुल ग्रॉस सैलरी में से टैक्स योग्य आय कैसे निकाली जा रही है। यकीन मानिए, यह छोटी सी आदत आपको साल के अंत में बड़ी राहत दे सकती है। मैंने खुद देखा है कि जब लोग अपनी सैलरी को ठीक से नहीं समझते, तो उन्हें अक्सर टैक्स प्लानिंग में दिक्कतें आती हैं।
आयकर गणना के मूल सिद्धांत: नींव मजबूत होगी तो इमारत भी टिकेगी
टैक्स की गणना कोई रॉकेट साइंस नहीं है, बस इसके कुछ मूल सिद्धांतों को समझना जरूरी है। सबसे पहले, आपकी कुल आय (ग्रॉस इनकम) क्या है? इसमें आपकी सैलरी, बोनस, भत्ते और बाकी सभी स्रोतों से आने वाली कमाई शामिल होती है। इसके बाद, सरकार द्वारा तय की गई कुछ कटौतियाँ (डिडक्शन) और छूटें (एग्जेम्प्शन) आती हैं, जिन्हें घटाने के बाद आपकी ‘टैक्स योग्य आय’ बचती है। इसी टैक्स योग्य आय पर अलग-अलग स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लगाया जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे आप कोई रेसिपी बनाते हैं – पहले सभी सामग्री इकट्ठा करो, फिर उसमें से कुछ हटाओ जो नहीं चाहिए, और अंत में जो बचा, उसी से स्वादिष्ट डिश बनती है। भारत में टैक्स स्लैब हर साल बदल सकते हैं, इसलिए अपडेटेड जानकारी रखना बहुत जरूरी है। मुझे यह जानकर बहुत हैरानी हुई थी कि कितने लोग इन बेसिक बातों को नजरअंदाज कर देते हैं, और फिर साल के अंत में पछताते हैं। इसलिए, अपनी नींव मजबूत रखें!
टीडीएस (TDS) का खेल: आपकी सैलरी से पहले ही क्यों कट जाता है टैक्स?
नियोक्ता की भूमिका और आपकी जिम्मेदारी: जानें कौन क्या कर रहा है
टीडीएस यानी ‘टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स’, जिसका मतलब है कि टैक्स आपकी कमाई के स्रोत पर ही काट लिया जाता है। आपकी कंपनी या नियोक्ता, सैलरी देने से पहले ही आपके अनुमानित टैक्स का एक हिस्सा काटकर सरकार के पास जमा कर देते हैं। यह सुनकर कई लोग घबरा जाते हैं, लेकिन इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं। यह एक सिस्टम है जिससे सरकार को नियमित रूप से राजस्व मिलता रहता है। आपके नियोक्ता की जिम्मेदारी है कि वे आयकर विभाग के नियमों के अनुसार सही टीडीएस काटें और जमा करें। लेकिन आपकी जिम्मेदारी भी कम नहीं है!
आपको अपने निवेश और अन्य कटौतियों की सही जानकारी समय पर अपने नियोक्ता को देनी चाहिए, ताकि वे आपके ऊपर लगने वाले टीडीएस की सही गणना कर सकें। अगर आपने ऐसा नहीं किया, तो हो सकता है कि आपका टीडीएस ज्यादा कट जाए और आपको रिफंड के लिए इंतजार करना पड़े। मैंने कई बार देखा है कि लोग आखिरी समय में निवेश के प्रूफ जमा करते हैं, जिससे गलतियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है।
टीडीएस सर्टिफिकेट (फॉर्म 16) का महत्व: यह आपका सबसे बड़ा सबूत है
टीडीएस के बारे में बात हो और फॉर्म 16 का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। फॉर्म 16 आपके नियोक्ता द्वारा जारी किया गया एक सर्टिफिकेट है, जिसमें आपकी सैलरी, आपके द्वारा किए गए निवेश और उस पर काटा गया कुल टीडीएस का पूरा विवरण होता है। यह आपके लिए किसी खजाने से कम नहीं है, क्योंकि यही वह दस्तावेज है जो आयकर रिटर्न (आईटीआर) फाइल करते समय आपके सबसे ज्यादा काम आता है। मुझे याद है, एक बार मैं अपना फॉर्म 16 कहीं रख कर भूल गई थी और आईटीआर फाइल करने में काफी परेशानी हुई थी। इसलिए, जैसे ही आपको आपका फॉर्म 16 मिले, उसे सुरक्षित रखें और उसकी एक कॉपी ऑनलाइन या डिजिटल रूप में भी सहेज कर रखें। यह न केवल आपके लिए सबूत का काम करेगा, बल्कि आपको अपनी टैक्स गणना को समझने में भी मदद करेगा। इसके बिना आईटीआर फाइल करना लगभग असंभव है।
टैक्स रिजीम की लड़ाई: पुराना या नया, कौन सा बेहतर?
पुराने रिजीम के फायदे और नुकसान: दशकों से चला आ रहा भरोसेमंद रास्ता
पुराना टैक्स रिजीम वह है जिसे हम सालों से जानते और समझते आ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह आपको कई तरह की कटौतियों और छूटों का लाभ उठाने का मौका देता है। अगर आप हाउसिंग लोन चुका रहे हैं, लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम भरते हैं, बच्चों की स्कूल फीस देते हैं, या पीपीएफ, ईएलएसएस जैसे निवेश करते हैं, तो पुराना रिजीम आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। धारा 80C, 80D, 24(b) जैसी धाराएं इसी रिजीम का हिस्सा हैं। इसका फायदा यह है कि आप अपनी टैक्स योग्य आय को काफी हद तक कम कर सकते हैं। लेकिन इसका नुकसान यह है कि यह थोड़ा जटिल है। आपको हर कटौती का हिसाब रखना पड़ता है, उसके लिए सबूत जमा करने पड़ते हैं। मैंने खुद कई बार इन कटौतियों का हिसाब-किताब रखने में घंटों बिताए हैं। यह उन लोगों के लिए बेहतरीन है जो टैक्स बचाने के लिए निवेश करने को तैयार हैं।
नए रिजीम की सादगी और उसकी सीमाएँ: एक नया और सरल विकल्प
नया टैक्स रिजीम सरकार द्वारा लाया गया एक वैकल्पिक सिस्टम है, जिसका मुख्य उद्देश्य टैक्स प्रक्रिया को सरल बनाना है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें टैक्स की दरें पुरानी रिजीम की तुलना में कम हैं। लेकिन इसकी एक बड़ी शर्त है – इसमें आपको पुरानी रिजीम में मिलने वाली ज्यादातर कटौतियों और छूटों का लाभ नहीं मिलता। इसका मतलब है कि अगर आप ज्यादा निवेश नहीं करते या आपके पास होम लोन जैसी कोई बड़ी देनदारी नहीं है, तो नया रिजीम आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। यह उन लोगों के लिए अच्छा है जो बिना किसी झंझट के कम टैक्स स्लैब का फायदा उठाना चाहते हैं। लेकिन अगर आप अपनी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा होम लोन, बीमा या अन्य निवेशों में लगा रहे हैं, तो नया रिजीम आपके लिए उतना आकर्षक नहीं होगा। मैंने खुद गणना करके देखा है कि मेरे लिए पुराना रिजीम ज्यादा फायदेमंद है, क्योंकि मैं निवेश के जरिए अच्छी खासी बचत कर पाती हूँ।
सही विकल्प चुनने में मेरी सलाह: आपके लिए क्या है सही?
अब सवाल यह उठता है कि आपके लिए कौन सा रिजीम बेहतर है? मेरा अनुभव कहता है कि इसका कोई एक सीधा जवाब नहीं है। यह पूरी तरह से आपकी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति, आपकी आय, आपके निवेश और आपकी देनदारियों पर निर्भर करता है। मैं हमेशा सलाह देती हूँ कि वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ही दोनों रिजीम के तहत अपनी संभावित टैक्स देनदारी की गणना कर लें। एक पेपर और पेन लें या ऑनलाइन कैलकुलेटर का उपयोग करें। देखें कि आप पुरानी रिजीम में कितनी कटौतियाँ क्लेम कर सकते हैं और फिर नए रिजीम में बिना कटौतियों के कितना टैक्स बनता है। जिस विकल्प में आपका टैक्स कम बने, वही आपके लिए सही है। मेरी एक दोस्त ने पिछले साल नए रिजीम का चुनाव कर लिया था बिना सोचे समझे और बाद में उसे एहसास हुआ कि पुराने रिजीम में उसे ज्यादा बचत हो सकती थी। इसलिए, जल्दबाजी न करें, समझदारी से चुनाव करें।
टैक्स बचाने के स्मार्ट तरीके: ये कटौतियाँ सच में आपके काम आएंगी!
धारा 80C के जादू से बचत: हर वेतनभोगी का पसंदीदा
धारा 80C आयकर अधिनियम की एक ऐसी धारा है जो हर वेतनभोगी व्यक्ति के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके तहत आप कुछ खास निवेश और खर्चों पर प्रति वर्ष 1.5 लाख रुपये तक की छूट पा सकते हैं। इसमें पीपीएफ (PPF), ईएलएसएस (ELSS), लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम, बच्चों की ट्यूशन फीस, होम लोन के मूलधन की वापसी और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी कई चीजें शामिल हैं। मेरा यकीन मानिए, 80C का सही इस्तेमाल करके आप अपनी टैक्स योग्य आय को काफी हद तक कम कर सकते हैं। मैंने खुद हर साल इसमें निवेश करके बहुत अच्छी बचत की है। यह न केवल आपके टैक्स को बचाता है, बल्कि आपको भविष्य के लिए एक अनुशासित तरीके से निवेश करने की प्रेरणा भी देता है। अगर आप अभी तक 80C का पूरा फायदा नहीं उठा रहे हैं, तो तुरंत इस पर ध्यान दें।
होम लोन और मेडिकल बीमा से मिलने वाले लाभ: सिर्फ सुरक्षा नहीं, टैक्स बचत भी!
सिर्फ 80C ही नहीं, और भी कई धाराएं हैं जो आपको टैक्स बचाने में मदद करती हैं। अगर आपने होम लोन लिया है, तो आप उसके ब्याज पर धारा 24(b) के तहत 2 लाख रुपये तक की छूट पा सकते हैं। यह बहुत बड़ी बचत होती है!
इसके अलावा, अगर आपने अपने और अपने परिवार के लिए मेडिकल इंश्योरेंस लिया है, तो धारा 80D के तहत आप उसके प्रीमियम पर भी छूट पा सकते हैं। यह न केवल आपको स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों में सुरक्षा देता है, बल्कि आपकी टैक्स देनदारी को भी कम करता है। मैंने खुद अपने परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा लिया है और मुझे न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि टैक्स में भी छूट मिलती है। ये ऐसी कटौतियाँ हैं जो आपकी वित्तीय योजना का एक अहम हिस्सा होनी चाहिए, सिर्फ टैक्स बचाने के लिए नहीं, बल्कि भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भी।
अपनी टैक्स योग्य आय की गणना: आसान स्टेप्स में समझें

कुल आय से कटौतियाँ कैसे घटाएँ? यह है असली खेल!
टैक्स योग्य आय की गणना करना बहुत सीधा है, अगर आप सही तरीके से स्टेप्स फॉलो करें। सबसे पहले, अपनी कुल आय (Gross Total Income) की गणना करें। इसमें आपकी सैलरी, घर का किराया (अगर कोई है), अन्य स्रोतों से आय (जैसे बैंक ब्याज) आदि सब शामिल करें। अब, इसमें से उन सभी कटौतियों को घटा दें जिनके लिए आप पात्र हैं, जैसे धारा 80C, 80D, 80E (एजुकेशन लोन पर ब्याज), 80G (दान) आदि। जो राशि बचेगी, वही आपकी ‘टैक्स योग्य आय’ या ‘शुद्ध कर योग्य आय’ (Net Taxable Income) होगी। इसी राशि पर सरकार द्वारा निर्धारित स्लैब रेट के अनुसार टैक्स लगाया जाएगा। मैंने खुद हर साल इस गणना को बहुत ध्यान से किया है, क्योंकि एक छोटी सी गलती भी आपके टैक्स को बढ़ा या घटा सकती है।
टैक्स स्लैब और उनका प्रभाव: जानें आप किस श्रेणी में आते हैं
टैक्स स्लैब वो श्रेणियाँ हैं जो सरकार आपकी आय के आधार पर तय करती है। हर स्लैब के लिए टैक्स की दरें अलग-अलग होती हैं। उदाहरण के लिए, एक निश्चित आय तक कोई टैक्स नहीं लगता, फिर अगली आय पर 5%, फिर 20%, और फिर 30%। यह एक प्रोग्रेसिव सिस्टम है, जिसका मतलब है कि जैसे-जैसे आपकी आय बढ़ती है, आप पर टैक्स की दर भी बढ़ती जाती है। यह जानना बेहद जरूरी है कि आपकी आय किस स्लैब में आती है, क्योंकि इसी से आपकी अंतिम टैक्स देनदारी तय होती है। मैंने एक बार गणना की थी, और पाया कि अगर मैं थोड़ी सी और बचत कर लेती, तो मैं निचले टैक्स स्लैब में आ सकती थी और काफी पैसे बचा सकती थी।यहां नए और पुराने टैक्स रिजीम के कुछ प्रमुख अंतरों को एक नज़र में दिखाया गया है:
| विशेषता | पुराना टैक्स रिजीम | नया टैक्स रिजीम |
|---|---|---|
| कटौतियाँ और छूट | लगभग सभी कटौतियाँ (80C, 80D, HRA, LTA आदि) उपलब्ध | कोई प्रमुख कटौती या छूट उपलब्ध नहीं |
| आयकर दरें | उच्च आयकर दरें (लेकिन कटौतियों के साथ कम हो सकती हैं) | कम आयकर दरें (लेकिन बिना कटौतियों के) |
| मानक कटौती (Standard Deduction) | 50,000 रुपये उपलब्ध | 50,000 रुपये उपलब्ध (केवल वेतनभोगी और पेंशनभोगियों के लिए) |
| HRA लाभ | उपलब्ध | उपलब्ध नहीं |
| वित्तीय योजना | निवेश-आधारित बचत के लिए प्रोत्साहन | सरल, निवेश पर निर्भरता कम |
आयकर रिटर्न (ITR) फाइलिंग: गलतियों से कैसे बचें और समय पर काम करें
सही ITR फॉर्म का चुनाव: गलती की कोई गुंजाइश नहीं
आईटीआर फाइल करते समय सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात है सही फॉर्म का चुनाव करना। आयकर विभाग ने अलग-अलग आय वर्ग और आय के स्रोतों के लिए अलग-अलग आईटीआर फॉर्म (ITR-1, ITR-2, ITR-3 आदि) निर्धारित किए हैं। एक वेतनभोगी व्यक्ति, जिसकी आय केवल सैलरी, एक घर से किराया और अन्य स्रोतों (जैसे बैंक ब्याज) से है, आमतौर पर आईटीआर-1 (सहज) फाइल करता है। लेकिन अगर आपकी आय के स्रोत अधिक जटिल हैं, जैसे शेयर बाजार से कमाई या एक से अधिक घर से किराया, तो आपको अन्य फॉर्म का उपयोग करना पड़ सकता है। मैंने एक बार गलती से गलत फॉर्म भर दिया था, और बाद में मुझे उसे संशोधित करना पड़ा, जिसमें काफी समय और मेहनत लगी। इसलिए, हमेशा सुनिश्चित करें कि आप अपनी आय के अनुसार सही फॉर्म का ही चुनाव करें।
अंतिम तिथि से पहले फाइलिंग के लाभ: आखिरी मिनट की भीड़ से बचें
आईटीआर फाइल करने की एक अंतिम तिथि होती है, जिसे आमतौर पर 31 जुलाई माना जाता है (गैर-ऑडिट मामलों के लिए)। मेरी हमेशा से यही सलाह रही है कि आखिरी मिनट की भीड़ से बचें और अपना आईटीआर समय से पहले ही फाइल कर दें। इसके कई फायदे हैं: आपको जल्दबाजी में गलतियाँ करने से बचने का मौका मिलता है; यदि आपको कोई रिफंड मिलना है, तो वह भी आपको जल्दी मिल जाता है; और सबसे बढ़कर, आप मानसिक शांति महसूस करते हैं। अगर आप अंतिम तिथि के बाद फाइल करते हैं, तो आपको जुर्माना लग सकता है और कुछ मामलों में आपको नुकसान को आगे बढ़ाने का लाभ भी नहीं मिल पाता। मैंने देखा है कि बहुत से लोग सोचते हैं कि “अभी तो बहुत टाइम है”, और फिर आखिरी कुछ दिनों में हड़बड़ी में काम करते हैं, जिससे गलतियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, अपनी टैक्स प्लानिंग को समय पर निपटाएं।
वित्तीय वर्ष के अंत की तैयारी: स्मार्ट प्लानिंग के टिप्स
पूरे साल की प्लानिंग कैसे करें? यह है सफलता की कुंजी
टैक्स प्लानिंग कोई आखिरी महीने का काम नहीं है; यह एक साल भर चलने वाली प्रक्रिया है। वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ही अपनी संभावित आय और निवेश का एक अनुमान लगा लें। अपनी सैलरी, अन्य आय स्रोतों, और उन सभी कटौतियों का मूल्यांकन करें जिनका आप लाभ उठा सकते हैं। एक स्प्रेडशीट बनाएं या एक नोटपैड पर सब कुछ लिखें। यह आपको यह जानने में मदद करेगा कि आपको पूरे साल में कितना निवेश करना है ताकि आप अपनी टैक्स देनदारी को कम कर सकें। मैंने खुद ऐसा ही किया है और यह मुझे बहुत मदद करता है। मैं हर तिमाही में अपनी टैक्स प्लानिंग की समीक्षा करती हूँ और जरूरत पड़ने पर बदलाव करती हूँ। इससे मुझे न केवल टैक्स बचाने में मदद मिलती है, बल्कि मैं अपने वित्तीय लक्ष्यों को भी बेहतर तरीके से हासिल कर पाती हूँ।
अचानक खर्चों से निपटने की तैयारी: आपातकालीन फंड का महत्व
टैक्स प्लानिंग करते समय, हमें अपनी वित्तीय स्थिति के सभी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। इसमें आपातकालीन फंड का निर्माण भी शामिल है। कई बार ऐसा होता है कि हमें अचानक कोई बड़ा खर्च आ जाता है, जैसे मेडिकल इमरजेंसी या नौकरी का छूट जाना। ऐसे समय में अगर हमारे पास पर्याप्त इमरजेंसी फंड नहीं होता, तो हमें अपनी टैक्स-सेविंग निवेश तोड़ने पड़ सकते हैं, जिससे हमें नुकसान हो सकता है। मेरा अनुभव कहता है कि कम से कम 3-6 महीने के खर्चों के बराबर का इमरजेंसी फंड हमेशा तैयार रखें। यह आपको वित्तीय अनिश्चितताओं से बचाता है और आपको अपने टैक्स-सेविंग निवेशों को बरकरार रखने में मदद करता है। यह एक ऐसी आदत है जो मैंने अपने जीवन में अपनाई है और इसने मुझे कई बार बड़ी मुश्किलों से बचाया है।
글을마चमीं
दोस्तों, मुझे उम्मीद है कि वेतन और आयकर के इस गहरे रिश्ते को अब आप बेहतर तरीके से समझ पाए होंगे। यह सिर्फ नियमों का एक सेट नहीं है, बल्कि आपकी वित्तीय सेहत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मैंने अपने अनुभव से सीखा है कि जब आप अपनी आय और टैक्स को समझते हैं, तो आप न केवल पैसे बचाते हैं, बल्कि एक सुरक्षित भविष्य की नींव भी रखते हैं। यह यात्रा थोड़ी जटिल लग सकती है, लेकिन यकीन मानिए, हर छोटी सी जानकारी आपको बड़ी राहत दे सकती है। अपनी प्लानिंग को साल भर फैलाएं, समय पर जानकारी दें, और सबसे बढ़कर, अपने पैसे को समझदारी से मैनेज करें।
जानने योग्य उपयोगी जानकारी
1. नए टैक्स रिजीम में वित्त वर्ष 2025-26 (निर्धारण वर्ष 2026-27) से ₹12 लाख तक की आय पर धारा 87A के तहत ₹60,000 की छूट मिलती है, जिससे ₹12 लाख तक की आय टैक्स-मुक्त हो जाती है। इसके अलावा, वेतनभोगियों के लिए ₹75,000 की मानक कटौती भी उपलब्ध है, जिससे प्रभावी रूप से ₹12.75 लाख तक की आय टैक्स-मुक्त हो सकती है।
2. पुराने टैक्स रिजीम में 70 से ज़्यादा छूट और डिडक्शन मिलते हैं, जो आपको टैक्स योग्य आय को काफी कम करने में मदद कर सकते हैं, जैसे कि PPF, जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, HRA, और शिक्षा लोन पर।
3. वित्तीय वर्ष 2024-25 (निर्धारण वर्ष 2025-26) के लिए आयकर रिटर्न (ITR) फाइल करने की अंतिम तिथि अब 15 सितंबर 2025 (उन व्यक्तियों के लिए जिन्हें ऑडिट की आवश्यकता नहीं है) है। इसे समय पर फाइल करना महत्वपूर्ण है ताकि जुर्माना और टैक्स लाभ खोने से बचा जा सके।
4. आयकर विभाग ने ITR फाइलिंग को आसान बनाने के लिए ‘AIS for Taxpayer’ और ‘Income Tax Department’ नामक मोबाइल ऐप लॉन्च किए हैं, जो वेतनभोगियों और छोटे करदाताओं के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
5. टैक्स बचाने के लिए सेक्शन 80C, 80D, और 24(b) (होम लोन ब्याज) का उपयोग करें। PPF, ELSS, NSC, सुकन्या समृद्धि योजना, और NPS जैसे निवेश न केवल टैक्स बचाते हैं बल्कि भविष्य के लिए धन भी बनाते हैं।
महत्वपूर्ण बातों का सारांश
संक्षेप में, अपनी सैलरी स्लिप को समझना आपकी वित्तीय योजना का पहला कदम है। टीडीएस आपके टैक्स को स्रोत पर ही काट लेता है, और फॉर्म 16 इसका सबसे बड़ा प्रमाण है, जिसे संभाल कर रखना बेहद ज़रूरी है। पुराने और नए टैक्स रिजीम में से सही का चुनाव आपकी व्यक्तिगत आय और निवेश पर निर्भर करता है, इसलिए दोनों की गणना करके ही निर्णय लें। धारा 80C के तहत निवेश, होम लोन के ब्याज और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम जैसी कटौतियाँ आपको लाखों रुपये का टैक्स बचाने में मदद कर सकती हैं। अपनी टैक्स योग्य आय की गणना करना सीखें और समय पर आईटीआर फाइल करके गलतियों से बचें। सबसे महत्वपूर्ण, वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ही एक स्मार्ट टैक्स प्लानिंग करें और आपातकालीन फंड का निर्माण करें, ताकि भविष्य की अनिश्चितताओं से सुरक्षित रह सकें। मुझे पूरा यकीन है कि इन सुझावों से आपकी टैक्स यात्रा बहुत आसान और फायदेमंद हो जाएगी!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 📖
प्र: टीडीएस (TDS) क्या है और यह मेरी सैलरी से क्यों काटा जाता है?
उ: देखिए, टीडीएस का मतलब है ‘स्रोत पर कर कटौती’ (Tax Deducted at Source). सरल शब्दों में कहें तो, यह इनकम टैक्स जमा करने का एक तरीका है, जहाँ सरकार आपकी आय का स्रोत पर ही एक छोटा हिस्सा काट लेती है.
जैसे, अगर आपको सैलरी मिलती है, तो आपका नियोक्ता (employer) आपकी अनुमानित सालाना आय पर लगने वाले टैक्स का एक हिस्सा हर महीने आपकी सैलरी से काट लेता है और उसे सरकार के पास जमा कर देता है.
यह इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 192 के तहत अनिवार्य है, अगर आपकी आय न्यूनतम छूट सीमा से ज़्यादा है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको साल के अंत में एक साथ बहुत सारा टैक्स नहीं भरना पड़ता, बल्कि यह थोड़ा-थोड़ा करके कटता रहता है.
मुझे याद है जब मैंने पहली बार अपनी सैलरी स्लिप में टीडीएस देखा था, तो मैं थोड़ी हैरान हुई थी, लेकिन बाद में समझा कि यह तो मेरा ही पैसा है जो पहले से ही जमा हो रहा है.
यह एक तरह से आपकी टैक्स देनदारी को बांट देता है. आपका नियोक्ता आपको फॉर्म 16 देता है, जिसमें इस कटौती का पूरा ब्यौरा होता है. अगर कभी आपका टीडीएस ज़्यादा कट जाता है, तो आप इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते समय उसका रिफंड क्लेम कर सकते हैं.
प्र: नए और पुराने टैक्स रिजीम में क्या अंतर है और मुझे कौन सा चुनना चाहिए?
उ: यह एक ऐसा सवाल है जो हर वेतनभोगी व्यक्ति के दिमाग में आता है, खासकर जब आईटीआर फाइल करने का समय आता है! भारत में दो मुख्य टैक्स रिजीम हैं – पुराना (Old Tax Regime) और नया (New Tax Regime).
पुराना टैक्स रिजीम: इसमें आपको कई तरह की छूट और कटौतियों का फायदा मिलता है. जैसे सेक्शन 80C के तहत पीपीएफ (PPF), जीवन बीमा (Life Insurance), ईएलएसएस (ELSS) में निवेश पर, सेक्शन 80D के तहत स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance) प्रीमियम पर, एचआरए (HRA), एलटीए (LTA), और होम लोन के ब्याज पर भी छूट मिलती है.
अगर आप इन सभी कटौतियों का भरपूर लाभ उठाते हैं, तो आपकी टैक्स योग्य आय काफी कम हो सकती है, भले ही टैक्स दरें थोड़ी ऊंची हों. नया टैक्स रिजीम: इसे 2020 में पेश किया गया था और इसका उद्देश्य टैक्स सिस्टम को सरल बनाना है.
इसमें टैक्स की दरें पुराने रिजीम के मुकाबले कम हैं, लेकिन आपको ज़्यादातर कटौतियों और छूटों का लाभ नहीं मिलता. हालांकि, 2025 के बजट में इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं, जैसे नई व्यवस्था में ₹75,000 की मानक कटौती (Standard Deduction) मिलती है, जबकि पुरानी में यह ₹50,000 है.
अब, ₹12.75 लाख तक की आय नई टैक्स रिजीम के तहत टैक्स-फ्री हो सकती है, स्टैंडर्ड डिडक्शन और सेक्शन 87A के तहत छूट के कारण. आपको कौन सा चुनना चाहिए? यह पूरी तरह से आपकी आय, आपके खर्चों और आपके निवेश पर निर्भर करता है.
अगर आप बहुत सारी बचत और निवेश करते हैं जो पुरानी रिजीम के तहत छूट के लिए पात्र हैं, तो शायद पुराना रिजीम आपके लिए बेहतर होगा. वहीं, अगर आपके निवेश और कटौतियां कम हैं, या आप टैक्स गणना को सरल रखना चाहते हैं, तो नया रिजीम फायदेमंद हो सकता है.
मैंने खुद अपने कई दोस्तों को दोनों रिजीम की गणना करके दिखाया है ताकि वे समझ सकें कि किसे चुनने से उन्हें ज़्यादा फायदा हो रहा है. हमेशा दोनों विकल्पों के तहत अपनी टैक्स देनदारी की गणना करें और फिर समझदारी से चुनें.
प्र: वेतनभोगी व्यक्ति के तौर पर मैं अपनी टैक्स योग्य आय की गणना कैसे कर सकता हूँ?
उ: अपनी टैक्स योग्य आय की गणना करना उतना मुश्किल नहीं है जितना लगता है, बस कुछ स्टेप्स को समझना होता है. मैं आपको एक सरल तरीका बताती हूँ, जिसे मैंने खुद कई बार इस्तेमाल किया है:1.
अपनी सकल आय (Gross Income) जानें: सबसे पहले अपनी कुल सकल आय को एक साथ जोड़ें. इसमें आपकी बेसिक सैलरी, भत्ते (जैसे HRA, LTA), बोनस, और कोई अन्य कर योग्य आय शामिल होती है.
अगर आपकी कई स्रोतों से आय है, तो उन सभी को जोड़ लें. 2. छूट (Exemptions) घटाएँ: इसके बाद, अपनी सकल आय में से उन राशियों को घटाएँ जिन पर टैक्स नहीं लगता.
उदाहरण के लिए, अगर आप किराए के घर में रहते हैं, तो आप हाउस रेंट अलाउंस (HRA) पर छूट का दावा कर सकते हैं. लीव ट्रैवल अलाउंस (LTA) पर भी कुछ शर्तों के साथ छूट मिलती है.
इन छूटों की गणना थोड़ी जटिल हो सकती है, इसलिए अपने नियोक्ता से सहायता लेना या ऑनलाइन कैलकुलेटर का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है. 3. मानक कटौती (Standard Deduction) लागू करें: वेतनभोगी कर्मचारियों को एक निश्चित राशि की मानक कटौती मिलती है.
पुरानी टैक्स रिजीम में यह ₹50,000 है, और नई टैक्स रिजीम में यह ₹75,000 है. यह एक सीधा कट है जो आपकी आय को कम करता है. 4.
कटौतियाँ (Deductions) घटाएँ: यह सबसे महत्वपूर्ण स्टेप है! यहाँ आप इनकम टैक्स एक्ट के अलग-अलग सेक्शन जैसे 80C, 80D, 80E आदि के तहत मिलने वाली कटौतियों का लाभ उठा सकते हैं (यह पुरानी टैक्स रिजीम चुनने वालों के लिए ज़्यादा फायदेमंद है).
सेक्शन 80C: इसमें पीपीएफ, ईएलएसएस, जीवन बीमा प्रीमियम, होम लोन के मूलधन का भुगतान, बच्चों की ट्यूशन फीस आदि में निवेश शामिल है, जिसकी अधिकतम सीमा ₹1.5 लाख है.
सेक्शन 80D: इसमें स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम का भुगतान शामिल है. सेक्शन 80TTA: बचत खाते पर ₹10,000 तक के ब्याज पर कटौती. सेक्शन 24B: होम लोन के ब्याज पर कटौती (कुछ सीमाओं के साथ).
इन सभी कटौतियों को अपनी आय में से घटाने के बाद, जो राशि बचती है, वही आपकी ‘टैक्स योग्य आय’ (Taxable Income) होती है. इसी राशि पर आपकी लागू टैक्स स्लैब दरों के अनुसार टैक्स की गणना की जाती है.
यह मुझे हमेशा बहुत अच्छा लगता है जब मैं इन कटौतियों के माध्यम से अपनी टैक्स देनदारी कम कर पाती हूँ! यह आपको स्मार्ट तरीके से बचत करने और अपने फाइनेंस को बेहतर ढंग से मैनेज करने में मदद करता है.






